ग़ज़ल
किसको कितना है मिला माल,न हमसे पूछो।
हाँ! करप्शन का ये जंजाल न हमसे पूछो।
तेरे कारण हुई है, ये जो मेरी हालत है,
अब तुम्हीं आके मेरा हाल न हमसे पूछो।
ज़ेह्न-ओ-दिल से तेरी यादों को मिटा डाला,अब
बीते दिन, गुज़रे हुए साल न हमसे पूछो।
कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,
कहाँ ग़ायब हुए चौपाल, न हमसे पूछो।
जनवरी और दिसंबर के महीने में “जय”,
सूर्य तोड़ेगा कब हड़ताल न हमसे पूछो।
— जयनित कुमार मेहता
बढ़िया ग़ज़ल !
आपका हार्दिक धन्यवाद,आ. विजय जी..
ग़ज़ल अच्छी लगी .
तहे दिल से आपका शुक्रिया जनाब।