लघुकथा- जंगली जानवर
पिताजी समझा रहे थे, मगर बच्चा समझ नहीं पा रहा था. वह प्रश्न पर प्रश्न करे जा रहा था. आखिर पिताजी थक गए. उन्हों ने चित्र हाथ में ले कर संक्षेप में समझाने का निर्णय लिया, “ इसे हम एक उदहारण से समझ सकते है.
“ जैसे हमारा यह मुंबई मकानों का जंगल हैं वैसे ही पेड़पौधो का जंगल हुआ करता था. जहाँ ये सब जंगली जानवर-हाथी, शेर, भालू, बन्दर, बतख, सारस आदि रहा करते थे.”
“ अच्छा पापा ! पहले ये सब जंगल में मंगल करते थे. फिर वह जंगल कहाँ गया और यह जंगल कहाँ से आ गया ?”
“ बेटा ! आदमी बढ़े और यह जंगल बढ़ गया और वह जंगल घट गया.”
“ फिर यह दो पैर का जंगली जानवर शहर आ गया होगा. मगर यह रहता कहाँ है पापा ? मुझे भी ये सब जंगली जानवर देखना है ताकि मैं इस चित्र पर अच्छा सा निबंध लिख संकू.”
तभी पिताजी अपना माथा पकड़ कर बैठ गए और मन में सोचने लगे कैसे बताऊँ कि इनका निवास स्थान तो व्यक्ति के अंदर हैं.
मानव में इंसानियत का वास हो जाए, तो जंगल में मंगल हो जाए. बहुत अच्छे.
शुक्रिया लीला तिवानी जी आप की अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आप का दिल से शुक्रिया.
अच्छी लघुकथा ! मनुष्य एक सामाजिक जानवर है.पर कई बार वह असामाजिक कार्य कर जाता है, जिससे वह जानवरों से भी बुरा हो जाता है.
आदरणीय विजय कुमार सिघल जी आप का शुक्रिया. आप को लघुकथा अच्छी लगी. पढ़ा कर लगा कि मेरी मेहनत सफल हो गई. .
आदरणीय विजय कुमार जी आप ने बहुत उम्दा बात कही है. कभी-कभी व्यक्ति वह कर जाता है जो उसे करना नहीं चाहिए.
लघु कथा अच्छी लगी ,यह दुनीआं इमारतों का जंगल ही तो है .
आदरणीय Bhamra जी आप को लघुकथा अच्छो लगी. यह जानकर प्रसन्नता हुई. आभार आप का,.
आदरनीय आप को लघुकथा पसंद आई. शुक्रिया आप का