गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : औरत

चौखट भी…दर भी…दीवार भी औरत…
आते जाते ठोकरों की मार है औरत…

ज़िंदगी के हर रिश्तों का किरदार है निभाया…
फिर भी अपनों से हीं बेज़ार है औरत…

जिस मकां को घर बनाने में उम्र सारी गुज़र दी
उसी घर में बेगानों सा आज़ार है औरत…

चाहे तो मिट्टी को भी कुन्दन बना दे…
वक़्त आने पर चंडी की अवतार है औरत…

ता-उम्र जिसके साथ हमवार बनी रही…
आज उसी की वफ़ा की तलबगार है औरत…

रहने दो अश्क बनकर ना गिरने दो जमीं पर…
तू जहां खड़ा है उस की हकदार है औरत।

रश्मि अभय

रश्मि अभय

नाम-रश्मि अभय पिता-श्री देवेंद्र कुमार अभय माता-स्वर्गीय सुशीला अभय पति-श्री प्रमोद कुमार पुत्र-आकर्ष दिवयम शिक्षा-स्नातक, एलएलबी, Bachelor of Mass Communication & Journalism पेशा-पत्रकार ब्यूरो चीफ़ 'शार्प रिपोर्टर' (बिहार) पुस्तकें- सूरज के छिपने तक (प्रकाशित) मेरी अनुभूति (प्रकाशित) महाराजगंज के मालवीय उमाशंकर प्रसाद,स्मृति ग्रंथ (प्रकाशित) कुछ एहसास...तेरे मेरे दरम्यान (शीघ्र प्रकाशित) निवास-पटना मोबाइल-09471026423 मेल [email protected]