गीत : अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की
अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की
तम के बदल भी छंटेंगे, यादकर भगवान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………..
है खुदा के नूर से ही, रौशनी संसार में
वो तेरी कश्ती संभाले, जब घिरे मंझधार में
हुक्म उसका ही चले, औकात क्या तूफ़ान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………..
माटी के हम सब खिलोने, खाक जग की छानते
टूटना है कब, कहाँ, क्यों, ये भी हम ना जानते
सब जगह है खेल उसका, शान क्या भगवान् की
अपने भीतर तू निरंतर ………………….
दींन-दुखियों की सदा तुम, झोलियाँ भरते रहो
जिंदगानी चार दिन की, नेकियाँ करते रहो
नेकियाँ रह जाएँगी, निर्धन की और धनवान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………
वाह
सुंदर रचना