एक अच्छा काव्य संग्रह
युवा कवयित्री डॉ सोनिया गुप्ता का नवीनतम काव्य संग्रह “उम्मीद का दीया” मेरे सामने है,और कुछ ही देर पहले मैंने इस संग्रह को पढना खत्म किया है.सबसे पहले तो बड़ी ही इमानदारी से यह स्वीकार करता हूँ की उनकी कविताओं ने वाकई मुझे प्रभावित किया है और शायद यही वज़ह भी रही है एक ही बैठक में संग्रह को पूरा कर पाया हूँ. डॉ सोनिया की कविताएँ समय की आहट को भांपती हुई लगीं साथ ही सहज भी जो शायद पठनीयता का पहला मापदंड होती है.बेशक एक उभरते हुए हस्ताक्षर से काव्य कला की तकनीक पर पूरी तरह खरा उतरने की अपेक्षा की भी नहीं जानी चाहिए(यह मेरी सोच है) और मैंने उस पर उतना तवक्को भी नहीं दिया है. हाँ पर इसमें कोई दो राय नहीं की विषयों के चयन और उनकी प्रस्तुति में जितनी संजीदगी नज़र आती है उसे बिलकुल एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए.
समसामयिक स्थितियों और मुद्दों को देखने का उनका अपना नजरिया है और उन स्थितियों की उन्हें बखूबी समझ भी है. यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी की कई रचनाओं में विषयों की विविधता है. कहीं वो दार्शनिक की तरह नज़र आती हैं तो कहीं उनकी चिंता को देखा और समझा जा सकता है साथ ही उनके अंतस की वेदना को महसूस भी किया जा सकता है.
कुछ पंक्तियाँ ,,,,इसका प्रमाण देती हैं ,,,,,,,,,,,,
बुझ कर भी जलते रहें जो दीप, रौशनी उनका अभिनन्दन करती है
बिन गरजे भी बरसें जो मेघ, वर्षा उनका अभिनन्दन करती है !!!
क्या है आखिर ये डर,
किस बात का डर,
किससे डरता है इंसान,
मुश्किलों से या खुद से ? ”
कारण बन जाऊँ
किसी की मुस्कराहट का,
चाहे दो पल की ही
दे पाऊँ उसको खुशी | ”
जब सुख का सागर छलकेगा,
और गम का बादल सरकेगा,
हर महफिल भी सज जायेगी,
वह सुबह कभी तो आयेगी !
हारने से क्यों डरते हो तुम ,
हार से हार मत मानो तुम
यदि जीवन में कुछ करना है हासिल ,
तो हार को गले लगाओ तुम !
असफलता , सफलता की सीढ़ी है
गिरकर संभलना ही तो जिंदगी है ,
आंसू तो केवल मज़बूरी हैं
आंसू कभी न बहाओ तुम !
इसके अलावा “भूर्ण पुकार,परिवर्तन,भ्रष्टाचार ,शिक्षक ,सोच,सुकों के पल ,ख्वाब और अभिमान जैसी कविताएँ भी हैं जो पाठकों का ध्यान खींचती हैं,,,,,,,,,,,
कुल मिला कर कहा जा सकता की डॉ सोनिया गुप्ता का यह संग्रह पठनीय है और उनके इस प्रयास की सराहना की जानी चाहिए. पर डॉ सोनिया गुप्ता जी को यह भी स्वीकार करना होगा की अभी काव्य कला की दृष्टि से उनकी रचनाओं में और परिपक्वता की ज़रूरत है!
— राजेश कुमार सिन्हा