ऐ मेरे चंचल मेरे
ऐ मेरे चंचल मन बहुत देखा है ये संसार
बनके पंछी उड़ा है गगन में पंख पसार
सूरज-चाँद-तारे गगन में रोज देखते हैं
आज देखने चलो क्या है गगन के पार
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ऐ दिल जगा उमंग जाना है सपनों के गाँव
गगन को छूना है तुम्हें रखकर जमीं पर पाँव
तूफानों से डरकर तू साहिल भूल न जाना
जीवन सफर में आते ही रहते हैं धूप-छाँव
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नहीं मिटा सकता कोई किसी का अभिलाषा
कर्मवीर पूरा करके रहते हैं मन की आशा
कुछ पल के लिए भले कोई रवि को ढँक दे
एक किरण आते ही छँट जाता सब कुहासा
-दीपिका कुमारी दीप्ति