ग़ज़ल
स्याह रातों को मिरे कोई सितारा दे दे।
या खुदा प्यार मुझे खुद से भी प्यारा दे दे ।
आज के दौर में पैसे को खुदा कहते सब
प्यार में जान दे आशिक वो अवारा दे दे ।
रहमतो की है नहीं चाह मुझे रब से भी
एक इंसान हूँ बस हक ही हमारा दे दे ।
इस कदर आपकी चाहत का असर मुझ पर है
जान कुर्बान करूं गर तू इशारा दे दे ।
चलन कैसा ये ग़रीबों पे सितम करने का
धूप में जलते हैं बस हक ही हमारा दे दे ।
खून के रिश्ते भी जब साथ नहीं देते हैं
“धर्म” अनजान सही मुझको सहारा दे दे ।
— धर्म पाण्डेय