ग़ज़ल
ख्वाहिशों के इन परिन्दों को उड़ाने दे जरा
अपनी आभा आसमानों तक बढ़ाने दे जरा
मुश्किलों का दौर गर आए तो आने उसे
उनको भी अपने इरादों को चढ़ाने दे जरा
राह हो कांटों भरी या फैली कालिमा यहाँ
हौसलों के हार में मोती जडा़ने दे जरा
ठोकरें खाकर यहाँ अक्सर संभलता आदमी
जिंदगी को पाठ अपना ये पढ़ाने दे जरा
सूर्य का सा तेज तेरा जगमगाये हर जगह
बस्ती रोशन हो ऐसी मशाल बनाने दे जरा
जाग जाये ये जहाँ ऐसा तराना छेड़ दे
अपने सुर को तू बुलन्दी आज पाने दे जरा
जर्रा जर्रा जान जाए शख्सियत तेरी हैं क्या
शायरी में तू मधुर ये सुर सजाने दे जरा
— मधुर परिहार