बेवजह कुछ माँगने!
झुकता नहीं हूँ मैं उन मंदिर और मस्जीद में!
जहाँ जाते हैं सब बेवजह कुछ माँगने।
देते तो हैं नहीं उस मुफलीस को कुछ,
जो आता नहीं बेवजह कुछ माँगने।
बदल देते हैं मुर्शिद, मुराद पुरी ना होने पर;
चले जाते हैं कहीं और, बेवजह कुछ माँगने।
जब जानते हो, माँगने से मर जाना अच्छा,
तो फिर क्यूँ जाते हो,कहीं बेवजह कुछ माँगने?
© Mayur Jasvani
12-01-15
8:00 a.m