माँ, तू किस भेष में है
नौ माह कोख में रखकर
मुझे आज दुनिया दिखाया
छोड़ कर मुझे अकेला
ये तूने कैसा स्वांग रचाया
न दुलार है न प्यार है
बस, ममताहीन दूध की धार है
तू आकाश में है या पाताल में है
तू किस देश में है?
माँ, तू किस भेष में है?
तारो में देखता हूं तूझे चंदा में देखता हूं
तेरी खबर हवा से पूछता हूं
तूझे कैसे पहचानु, न रूप याद है
न जुबान है न कोई साथ है
तेरे होने का अहसास हवा कराती है
फूलों की खुश्बू विश्वास दिलाती है
पर कहाँ है?
तू पंछी में है या फूलों में है
तू पेड़ो में है या झूलों मे है
तू बता दे, किस परिवेश मे है
माँ, तू किस भेष मे है?
तू आ जा माँ , हवा ने रूख बदल दिया है
अपनो ने ही मुझे कांच का महल दिया है
हुई हो मुझसे गलती, माफ करना
पर, तू मुझसे दूर किस द्वेष मे है?
माँ, तू किस भेष मे है?
— अतुल बालाघाटी