कविता
चाँद आसमां में है
चांदनी छन छन के
खिड़की के बंद शीशे से आकर
बिस्तर के चादरों पर बिखरी है.
किरणें कभी मेरे जिस्म पर फिसलती
कभी चादरों की सिलवटों में गुम होतीं
कि तभी चाँद
आगोश में बादलों की छिप जाता है
एहसास-ए-तनहा मुहब्बत का
फिर एक बार
मेरे संग सो जाता है !
— साधना ठाकुर