कविता
मैने तो सोचा था
वो खत्म हो गए हैं अब
मैने तो मार दिया था
उनको उनके ही
घर मे सरेआम
ललकारा था उनकें ही
लोगों के सामने
खुले शेर की तरह
परन्तु …..
मेरा दिल तो आज भी सहम गया
उस छोटे से बच्चे की तरह
जब मैने देखा
अपने ही जिगर के टुकडे को
भूखे पेट तरसते
अनाज के एक एक दाने के लिए….
सुनो! मै तो उतार आया था
बोझ की वो गठरी
जो उठाई थी बीस सालों से
अपने वजूद पर….
परन्तु मुझे तो फिर
सुनाई दी
वो हूक
वो तरसती बिलखती
आवाजें
जब मैने देखा मेरी ही
सोच के आशियाने मे
अपनी सरकार की दगाबाजियों
मे कैद….
उम्र कैद की सजा काट रहें
अपने ही वारिसों को
जिन्होंने सरअंजाम देना था
उस वार्ता को
खून से नम हुई जमीन की
कत्लोगारत और दहशत
से भरे उस खूनी खेल की ….!!
**रितु शर्मा****