कुण्डली/छंद

लावणी छंद

मानव कुल में जन्म लिया है,
कर्म घिनौने करते हैं!
गली गली में रावण बैठे,
नित पर नारी हरते हैं!
राखी का क्या मान बचेगा,
कर्ज दूध का भूल गये!
सत्ता जब लाचार हुई तो,
पापी मद में फूल गये!-

माँ दुर्गा को चले मनाने,
घर की माँ का ध्यान नहीं!
पूजा पाठ अनोखा उनका,
माँ के दुख का भान नहीं!
रामायण का पाठ करा कर ,
राम भक्त बन जाते हैं!
एक इन्च भूभाग हेतु जो,
भाई को मरवाते हैं!-

रावण का जो दहन करें वो,
शक्स नही मिल पायेगें!
मर्यादा जब बची नही तो,
राम कहाँ से लायेगें!
अंधी दौड चली है जग में,
मानवता का ज्ञान नही!
सब भूखे दौलत के जग में,
रिस्तो का अब मान नहीं!-

सत युग में सीता माँ बेवस,
हरण हुआ, बनवास सहा!
द्वापुर मे द्रोपदी तपडती,
चीर हरण उपहास सहा!
युग युग से नारी की गाथा,
दुख का ही अहसास बनी!
कभी छला अपनो ने तो फिर,
कभी गैर का ग्रास बनी!

— शिव चाहर ‘मयंक’

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]