लघुकथा- आ लौट चले
लघुकथा- आ लौट चले
फोन रखते ही पत्नी माथा पकड़ के बैठ गई.
विजातीय पति से लव मैरिज के कारण सासससुर ने जाति बाहर होना के पहले ही उन को अपमानित कर घर से बाहर कर दिया. वे सम्पति से बेदखल हो कर वे शहर आ गए थे. तभी से सासससुर से उन का कोई वास्ता नहीं था. मगर पति हर माह मातापिता को बंधीबंधाई रकम पहुंचा दिया करते थे.
घर पर वृध्द मातापिता की सेवा करने वाला छोटा भाई था. अगले माह उस की शादी थी. शायद उसी का फोन होगा. यह सोच कर उस ने फोन उठाया था. मगर यह क्या ? उस की गृहस्थी बसने से पहले ही उजड़ गई थी.
“ क्या हुआ ! ऐसी क्यों बैठी हो ?” पति काम से लौटते बोले तो अभी तक रुका हुआ सब्र का बांध टूट गया. वह जम कर रो उठी.
“ क्या हुआ ! बोले !” शंकित पति ने उसे झंझोड़ा.
“ अब हमे घर लौटना होगा. मातापिता का एकलौता सहारा यानि तुम्हारा भाई मोटरसाइकिल दुर्घटना में चल बसा.” कहते ही उस के समस्त गिलेसिकवे आंसुओं में बह गए.
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२८/१२/२०१५ ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
अच्छी लघुकथा !
आदरनीय सिघल जी आप को लघुकथा पसंद आई . शुक्रिया.
अच्छी लघुकथा !