कविता

मनुर्भव

आदमी ही आदमी का काल क्यों बना है आज,
आदमी से भेदभाव, मूर्खता निशानी है ।
स्वार्थपूर्ण भावना से विश्व है चलायमान
दान पुण्यगाथा सभी, धर्मों ने बखानी है ॥

आदमी की जाति एक, पशु की भाँति नही वो
धर्मान्ध कट्टरता ने बात नहीं मानी है ।
मानव-मानव में हो प्यार, वर्ग संघर्ष क्यों ?
युद्धमुक्त दिव्य शान्ति पृथ्वी पर लानी है ॥

बिना सभ्यता के भारत की पहचान कैसी
‘वन्दे मातरम्’ से फिर एकता दिखानी है ।
हिन्दू बोले हिन्दी वाणी बात मैनें भी मानी ।
देववाणी है कल्याणी, कहती ‘शिवानी’ हैं ॥

शिवानी शर्मा

नाम-शिवानी शिक्षा--B.Com. MBA. & Montessori diploma. जन्मदिन- 6 मार्च स्थान- जयपुर (राजस्थान) रूचि--लिखना,पढना,संगीत सुनना ,बाते करना ,घूमना और बच्चों के साथ खेलना। परिचय -झीलों की नगरी उदयपुर में जन्म लिया और बचपन बिताया ! पहले पिताजी की और फिर पति महोदय की नौकरी ने कई शहरों में - उदयपुर, अलवर,जयपुर, बांसवाड़ा, इन्दौर और अभी अजमेर, प्रवास के सुअवसर प्रदान किये। 1990 से आकाशवाणी से जुड़ी रही हूं जहाँ मेरे लिखने और बोलते रहने का शौक पूरा होता रहा है। अब दूरदर्शन से भी जुड़ गयी हूं और काव्य गोष्ठियों का हिस्सा बन रही हूं। अच्छा साहित्य पढ़ने के शौक ने छात्र जीवन में ही हाथ मे कलम थमा दी थी और अभी भी सीख रही हूं मन की बात कहना! विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाओं को स्थान मिल रहा है जिनमें "राजस्थान पत्रिका " दैनिक भास्कर व "अटूट बंधन " "मंडी टुडे" "सारा सच" "लोक जंग" आदि भी शामिल हैं । कुछ काव्य संग्रहों का संपादन, मंच संचालन भी कार्यानुभव में शामिल है। "अजमेर पोएट्स कलेक्टिव" संस्था की सह-संस्थापक भी हूं। "साहित्य गौरव" सम्मान से सम्मानित जो भी मिला है जीवन से,समाज से,उसमें अपने अनुभव और एहसास पिरो कर वापस कर देती है मेरी कलम , जिसे आप कविता/कहानी कहते हैं। ........ शिवानी जैन शर्मा

2 thoughts on “मनुर्भव

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता है .

  • Man Mohan Kumar Arya

    सुन्दर भावों से परिपुष्ट कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद। वेदो में एक मन्त्र में भी “मनुर्भव” कहकर मनुष्य को गुण, कर्म व स्वभाव से भी मनुष्य बनने के लिए प्रेरित किया गया है।

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