मनुर्भव
आदमी ही आदमी का काल क्यों बना है आज,
आदमी से भेदभाव, मूर्खता निशानी है ।
स्वार्थपूर्ण भावना से विश्व है चलायमान
दान पुण्यगाथा सभी, धर्मों ने बखानी है ॥
आदमी की जाति एक, पशु की भाँति नही वो
धर्मान्ध कट्टरता ने बात नहीं मानी है ।
मानव-मानव में हो प्यार, वर्ग संघर्ष क्यों ?
युद्धमुक्त दिव्य शान्ति पृथ्वी पर लानी है ॥
बिना सभ्यता के भारत की पहचान कैसी
‘वन्दे मातरम्’ से फिर एकता दिखानी है ।
हिन्दू बोले हिन्दी वाणी बात मैनें भी मानी ।
देववाणी है कल्याणी, कहती ‘शिवानी’ हैं ॥
बहुत अच्छी कविता है .
सुन्दर भावों से परिपुष्ट कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद। वेदो में एक मन्त्र में भी “मनुर्भव” कहकर मनुष्य को गुण, कर्म व स्वभाव से भी मनुष्य बनने के लिए प्रेरित किया गया है।