लघुकथा— सीक्रेट
जनरल स्टोर में छुटकी बड़ी देर से खड़ी थी। भीड़ ख़त्म होते ही छुटकी ने दूकानदार को मुट्ठी में दबा कागज का टुकड़ा पकड़ा कर कहा — ” ये दे दो ” , दुकानदार वो उसे पकड़ाने लगी तो छुटकी तेजी से धीमी आवाज में– ” किसी पेपर में लपेट के काली थैली में दो ”
दुकानदार खीजी फिर मुस्कुराते हुये – ” अरे इसमें सीक्रेट जैसा क्या है ये तो औरतों की हर महीने की जरुरत है , आज कल तो बच्चे भी जानते समझते हैं ”
” ठीक है , मगर सब ये तो नहीं जानते हैं ना कि कब कौन इस को बरत रही ह, मेरी माँ कहती है ऐसे नितांत व्यक्तिगत हार्मोन्स का खेल जान समझ कर कोई फायदा उठाकर गलत कर सकता है। “
— मँजु शर्मा