सुपारी सेवन करने से मुख के पर्यावरण पर प्रभाव
अक्सर सभी सोचते हैं कि मुख की बीमारी का और अंगों से क्या लेना देना, परन्तु कहते हैं “मुख पुरे शरीर का एक आईना होता है” ! मुख के पर्यावरण की स्वस्थता पुरे शरीर को स्वस्थ रखती है! परन्तु यदि मुख में कोई रोग उत्पन्न हो जाए तो बाकि स्वास्थ्य पर भी असर होता है!
प्रकृति ने हमें बहुत से पेड़ पौधों और वनस्पति से नवाजा है, जो कि शरीर के अनेकों रोगों के इलाज में सहायक सिद्ध होते हैं ! जैसा कि हमारा धार्मिक इतिहास भी दर्शाता है; स्वयमं प्रभु लक्ष्मण के प्राण संजीवनी बूटी के प्रभाव से बच पाए थे ! परन्तु यह भी सत्य है कि किसी भी चीज का अत्याधिक सेवन भी हानिकारक होता है !
सुपारी एक ऐसा प्राकृतिक पदार्थ है, जो कि भारतीय संस्कृति में कईं युगों से खान पान के सेवन, धार्मिक रीति रिवाज, और औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और आज भी बहुत से मुस्लिम परिवारों में यह प्रथा चल रही है! यह मान्यता है कि इसके सेवन से एक मानसिक आराम मिलता है!
परन्तु इसके इस्तेमाल से मुख के वातावरण पर भी कुछ दुष्प्रभाव हो सकता है ! पिछले कुछ वर्षों में पाया गया है कि सुपारी के अधिक प्रयोग और सेवन करने से मुख का कैंसर भी हो सकता है ! इस लेख में संक्षिप्त में कोशिश करूंगी इस विषय पर कुछ जानकारी देने की, खास कर आज कल की युवा पीढ़ी को, जो कि तनाव में आकर नशे का सेवन शुरू कर देते हैं !
सुपारी एक प्राकृतिक पदार्थ है जोकि “ऐरिका क्टैचु” नामक पेड़ के फल से मिलता है; वास्तव में यह इसका बीज कहलाता है! भारत सुपारी का एक बड़ा पैदावार है! माना जाता है कि भारत में खास कर दक्षिण इलाका; एक मिलियन लोग अपनी रोजी रोटी के लिए सुपारी पर निर्भर करते हैं! और अब इसका प्रभाव विदेशों में भी पड़ने लगा है! सुपारी आज के समय में निकोटिन, शराब और कैफीन के बाद चौथे स्थान पर प्रयोग में आने वाली नशीली वस्तु मानी जाती है!
क्या है अंश इस सुपारी का?
सुपारी में बहुत से पदार्थों का मिश्रण होता है जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन्स, रेशेदार पदार्थ, रुखा रेशा, और कुछ खास अंश जैसे कि टैनिन्स और तांबा! सुपारी में मौजूद दो खास पदार्थ ऐरीकोलिन, ऐरिकाdin सब से ज्यादा हानिकारक होते हैं जोकि मुख के वातावरण पर दुश्र्भाव डालते हैं !
क्या होता है सुपारी का दुष्प्रभाव मुख के पर्यावरण पर?
मुख के भागों को दो हिस्सों में विभाजित किआ जाता है:
1. सख्त : जैसे कि दांत और कुछ हड्डियाँ
2. कोमल: जैसे कि जिह्वा, मांस और मासपेशियाँ
सुपारी का सेवन इन दोनों पर अपना प्रभाव दिखाता है !
सख्त हिस्सों पर प्रभाव:
1. दांतों का घिसना : सुपारी के सेवन से उसमें मौजूद रूखे और रेशेदार पदार्थ दांतों को नुक्सान पहुंचाते हैं! जिसमें सबसे प्रमुख है, उनका घिस जाना. जब दांतों की बाहरी सतह (इनेमल) घिस जाती है, तो अंदरूनी परत (डेंटिन) में मौजूद नलाकार आकृतियाँ उभर जाती हैं जिस से कि कुछ भी खाने पीने से दांतों में गर्म ठंडा महसूस होता है ! दांतों की जड़ों में भी दरार आ जाती है जिसके कारण मौजूद निचली हड्डी में भी समस्या आ सकती है!
2. दांतों पर दाग धब्बे: सुपारी के अधिकतम उपयोग से लाल रंग का थूक बनता है जो कि समय के साथ काले और भूरे रंग में भी परिवर्तित हो जाता है और परत के रूप में ये धब्बे बनकर दांतों को गंदा कर देते हैं ! (तस्वीर २)
3. मुख के जोड़ों का खराब हो जाना: टेम्पोरोमैंडीबुलर नाम का एक जोड़ होता है जो कि निचले जबड़े को खोपड़ी की कुछ हड्डियों से जोड़ता है ! कच्ची सुपारी के सेवन से इस पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है, मुख का खुलना भी कम हो जाता है ! इस जोड़ में दर्द और ध्वनि पैदा होने लगती है ! इसके लिए फिर सर्जरी भी करनी पड़ सकती है !
कोमल हिस्सों पर प्रभाव:
1. ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस : यह एक ऐसी बिमारी है जो कि आगे जाकर मुख के कैन्सर में परिवर्तित हो सकती है ! और इसका प्रमुख कारण सुपारी का सेवन ही होता है! सुपारी को पान मसाला, जर्दा, मीठा पान, या तम्बाकू के साथ मिलाकर या फिर ऐसे ही कच्ची सुपारी के रूप में इस्तेमाल किआ जाता है ! सुपारी किसी भी रूप में इस्तेमाल की गयी हो अधिकतम उपयोग करने से नुक्सान ही करती है! परन्तु इस बीमारी का प्रमुख कारण कच्ची सुपारी होता है ! यह पाया गया है कि सुपारी में उपस्थित खनिज पदार्थ तांबा मुख के मॉस से लग कर उसको खुरदरा बना देता है, जिसके कारण कीटाणु उस खुरदरी सतह पर जल्दी दुष्प्रभाव डालते हैं और बिमारी का विस्तार जल्दी होता है ! यह तांबा “लायिसायिल ओक्सिडेस” नामक एक एंजाइम को भी प्रभावित करता है जोकि मुख के मास को बनाने वाले रेशेदर पदार्थ को खराब कर देते हैं और, एक दुष्प्रभाव डालते हैं.
सुपारी का सेवन यदि दिन में ज्यादा बार किआ जाता है, तो ये बिमारी शीघ्र असर दिखाती है, बजाय इसके कि रोगी को ये आदत कईं बरसों से हो !
इस बिमारी के लक्षणों को तीन हिस्सों में देखा जा सकता है:
1. लालिमा आना, छाले पड़ना, जलन महसूस होना, अल्सर हो जाना
2. छाले फूट कर एक घनी सी परत बना देते हैं जिसको “फाइब्रोसिस” का नाम दिया जाता है, मुख्यता यह लक्ष्ण मुख के गालों वाली तरफ के मास पे दिखाई देता है, चूँकि रोगी सुपारी को इसी जगह पर ज्यादा रखता है. ये परत बैंड्स के रूप में परिवर्तित हो जाती है, जोकि इस बीमारी का प्रमुख लक्ष्ण है! (तस्वीर ३) यह परत तालू, जिह्वा, होंठों के आस पास भी जमा हो जाती है! मांस घना होने के कारण रोगी का मुख धीरे धीरे खुलना बंद होने लगता है! समान्य मुख खुलने की सीमा ४०-४५ सेंटीमीटर तक मानी जाती है, पर इसमें यह १०-११ सेंटीमीटर तक भी रह जाती है! जिह्वा की हिलजुल भी कम होने लगती है और बाहर निकालने में रोगी को दिक्कत आती है! (तस्वीर ४)
3. अंतिम स्थिति में रोगी के मुख का पर्यावरण कैंसर जैसे लक्षणों में परिवर्तित होने लायक हो जाता है ! और इस स्थिति तक पहुंचते पहुंचते ईलाज करना भी मुश्किल हो जाता है!
यूँ तो इस बिमारी के और भी कारण हैं, जैसे कि मिर्चों का सेवन, कुछ बैक्टिरिया, वायरस, और फंगस, पोषक खाद्य पदार्थों की कमी इत्यादि; परन्तु सुपारी इसका प्रमुख कारण है ! अत: इसका उपयोग बड़े ध्यानपूर्वक किआ जाना चाहिए!
2. लयूकोप्लेकिया : यह भी एक बिमारी है जो आगे जाकर कैंसर में बदल सकती है! वैसे इसका प्रमुख कारण जर्दा, तम्बाकू होता है, परन्तु सुपारी भी इसका एक कारण मानी जाती है! यह एक सफेद रंग की सतह के रुप में पनपती है, जोकि यूँ ही आसानी से मिटाई नहीं जा सकती! यह भी मुख्य्त्र गालों वाले मांस पे नजर आता है! परन्तु उन सभी जगहों पे जहाँ जहाँ रोगी सुपारी या तम्बाकू को रखता है, यह बिमारी वहीं अपने लक्ष्ण दिखाने लगती है! उस सतह पर जलन, खुरदरापन और उल्सर होने लगते हैं ! (तस्वीर ५)
3. इरिथ्रोप्लाकिया : लयूकोप्लेकिया की तरह यह बिमारी भी आगे जाकर कैंसर में बदल सकती है! सिर्फ फर्क है की यह एक लाल रंग की सतह होती है, और मिश्रित लाल या सफेद भी! यह बीमारी ज्यादा समान्य नहीं परन्तु ज्यादा घातक होती है! (तस्वीर ६)
4. मुख का कैंसर: जैसे की उपरुक्त बीमारियों में बताया गया है कि उन सभी का अंतिम चरण कैंसर की तरह बढ़ता हुआ नजर आता है, सो इस से साफ़ जाहिर है कि सुपारी मुख के कैन्सर को बढ़ावा देती है! यह पाया गया है कि सुपारी में उपस्थित खनिज पदार्थ और अंश कैंसर को पैदा करने में सक्षम होते हैं!
5. मसूड़ों का खराब होना: यह भी देखा गया है कि सुपारी के सेवन से, मसूड़े कमजोर हो जाते है, और उनके आस पास का पर्यावरण भी अनुकूल बन जाता है! इस से दांतों को भी कमजोरी मिलती है, और हिलने लगते हैं! मसूड़ों पे दाग धब्बे भी पड़ने लगते हैं !
आज के दौर में रोजी रोटी कमाना बहुत कठिन सा हो चूका है, यह सब जानते हैं! विज्ञान और प्रकृति ने हमें बहुत सी सौगातों से नवाजा है, परन्तु हम सब हर परिणाम से अवगत होते हुए भी उसको अनदेखा करते हैं और अपनी मेहनत की कमाई को बेफालतू के खुद के दिए रोगों के ईलाज में लगा देते हैं! यदि चिकित्सकों द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलें और सतर्क रहें तो जान माल दोनों की हानि से बचा जा सकता है! मुख पुरे शरीर का आइना होता है! मुख की बीमारी पुरे अंदरूनी अंगों पर प्रभाव डालती है! इसलिए यह आवश्यक है कि उन सभी चीजों के सेवन से दूर रहा जाए जोकि ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देती हैं के मनुष्य को अस्पताल के दर्शन करने पड़ते हैं!
आशा है इस लेख से थोड़ी जागरूकता अवश्य आएगी! एक दंत चिकित्सक होने के नाते मेरी यही दुआ है कि इस ब्रह्मांड का हर प्राणी स्वस्थ रहे! तन मन स्वस्थ होगा तभी जीवन भी! मैं यह नहीं कहती कि चीजों को इस्तेमाल करना बंद कर दीजिये, शौक से करिये लेकिन एक हद तक! अपनी सीमा लांघकर हर चीज अपना दुष्प्रभाव अवश्य दिखाती है!
— डॉ सोनिया गुप्ता
दंत चिकित्सक
बी.डी.एस; ऍम.डी.एस
बहुत अच्छा लेख ! पहले मैं सुपारी बहुत खाता था। अब ज्यादा तो नहीं खाता पर कभी कभी खा लेता हूँ। लेकिन अब बिल्कुल नहीं खाऊँगा। इसकी जगह लोंग इलायची खा लिया करूँगा।
लेख में एक मामूली गलती है। मुँह खोलने की सामान्य सीमा आपने ४०-५० सेंटीमीटर लिखी है। इतना तो सुरसा का मुँह ही खुल सकता है। यह मिलीमीटर होना चाहिए।
सोनिया जी , आप का लेख बहुत अच्छा लगा .वैसे मैंने सुपारी कभी चखी ही नहीं लेकिन इंडिया के लोगों के लिए यह जानकारी बहुत अच्छी है . जो किसी प्रोफैशन में होता है वोह उस की छोटी छोटी बात को बहुत अछे ढंग से समझा सकता है जैसे यह सुपारी के बारे में लिखा .आशा करता हूँ कि आप दांतों की अन्य बीमारीओं के बारे में भी लिखेंगी .