धरती बनी भिखारन
भीख में तूझसे मांग रही हूं
सबका जीवन दान
बनी भिखारन तेरे दर पे
दया करो घन श्याम ।
गरज-गरज कभी ऐसे बरसे
बिछा दिया जल-जाल
कभी उड़ गये संग पवन के
तहां उड़ती रज-गुलाल
कितने झुलसे सूर्य तपन से
कितने डूबे मकान ।
बनी भिखारन तेरे दर पे
दया करो घन श्याम ।।
भरो न इतनी गागर मेरी
जो छलकत-छलकत जाय
भीग रहा है तन- बदन
मन प्यासा न रह जाय
सारे दर्द मैं पी लूंगी, पर
बच्चों का रखो ध्यान ।
बनी भिखारन तेरे दर पे
दया करो घन श्याम ।।
— अतुल बालाघाटी