कविता : कुछ करिये
मन उद्वेलित है नींद नहीं अब आती है,
उन बीर शहीदों की ही याद सताती है,
बलिदान हो गए आज वहां लड़ते लड़ते,
उनकी विधवाओं की आह रुलाती है ।।1।।
अब ताशकन्द, शिमला समझौता बन्द करो,
लाहौर ट्रेन, समझौता बस बेमानी हैं ,
गफलत में रहना , जीना अपना बन्द करो,
यह गलती बहुत बुरी होगी, नादानी है ।।2।।
क्यों छप्पन इंची सीना सिकुड़ा जाता है ,
क्यों जाते हो लाहौर गले लग जाते हो,
यह दरियादिली दिखाना अब तो बन्द करो,
माँ के सीने पे लगी चोट सह जाते हो ??3।।
सहने की भी सीमा होती , वह खत्म हुई ,
अब और अधिक यह देश नहीं सह पायेगा,
अब तो समयोचित प्रत्युत्तर देना होगा,
वरना इतिहास कलंकित हो रह जाएगा ।।4।।
इकहत्तर फिर इक बार हमें दुहराना है,
पाकिस्तानी कश्मीर हमे लेना होगा,
हम सिंध – बलोचों को आज़ाद कराएँगे,
आघात भयंकर दुश्मन को देना होगा ।।5।।
भारत की सेनाओं को दे दो खुली छूट ,
आदेश करो उनकी सीमा में घुस जाएँ,
सारे आतंकी अड्डों का विध्वंस करें,
अभियान युद्ध का करने में सब जुट जाएँ ।।6।।
अंतिम विकल्प है युद्ध , युद्ध करना होगा,
नारे चिल्लाना शांति -शांति का बन्द करो,
जो रक्त – पिपासु बना बैठा दुश्मन उससे ,
रण- कौशल दिखलाओ, निर्णायक द्वन्द करो ।।7।।
— विद्या भूषण मिश्र ‘ज़फ़र’