याद
क्या करूँ ऐसा की उसकी याद न आए
बार बार यूँ मुझे तन्हा न तड़पाये
लाख कोशिश करके भी
कमबख्त जाती ही नही
मुझे तो यूँ लगने लगा है
कहीं वो मेरी जान तो नही बन गयी
जो कितने यतन के बाद भी जाती ही नही
क्या करूँ ऐसा की उसकी याद न आए
बार बार यूँ मुझे तन्हा न तड़पाये
ऊपर से आलम ये है की
ज़र्रे ज़र्रे में वो ही नज़र आती है
आईने के सामने जाता हूँ
तो उसकी तस्वीर नज़र आती है
अपनी आँखों में भी देखा नही जाता
क्योंकि आंसू बनके वो फिर से टपक जाती है
फिर से टपक जाती है
फिर क्या हुई खता मुझसे
की टिक न सकी मेरी साँस में सांस बनके
अब सांस भी लूँ तो कैसे लूँ
मेरी आधी सांस तो
उसकी साँसों में नज़र आती है
तभी पूछता हूँ
क्या करूँ ऐसा की उसकी याद न आए
बार बार यूँ मुझे तन्हा न तड़पाये