इशारों से जब दिल की बात बताए
लोग कहते है ये अदाओं का जमाना है
परिंदे ने जब प्रेम -पंख फैलाए
लोग भला भला उसे क्यूँ कहते दीवाना है
झरने बिन पानी भला कैसे शोर मचाए
सागर का तो किनारों पर शोर मचाना है
बीतें संग पलों से मन का विश्वास बढ़ाएँ
बिछुड़े दर्द को अब तो आँखों से ना रुलाना है
प्रकृति के गवाहों ये बातें कैसे बताएँ
ख़्वाबों से हमने बना लिए रिश्ते उन्हें अब सजाना है
तितलियों मौसम की नजाकत कैसे बताएँ
छुपाकर रखी फूलों खुशबू उन्हें आँधियों से बचाना है
— संजय वर्मा “दृष्टि”