चुप्पी
कभी किसी की चुप्पी
कितना उदास कर जाती है।
साँसें भी भारी होती जाती है।
मन हो जाता है उस झील सा
जो कब से बारिश के इंतजार में
चुपचाप थम सी गई हो
और उसकी लहरें भी उंघ रही हो किसी किनारे बैठ के
शाम भी तो धीरे से गुजरी है अभी
कुछ फुसफूसाती हुई
उसे भी किसी की चुप्पी का खयाल था शायद।
— महिमा श्री