कविता

कविता : गुज़रा साल कुछ ऐसे आया

गुज़रा साल कुछ ऐसे आया
जैसे सोच की कड़ी
बीच से टूट गई हो
जैसे समझने की शक्ति
खत्म होती जा रही हो
एक चुभन सी हो गई हो
आस्था की आँखों में
नींद के हाथों से कोई खूबसूरत
सपना टूट गया हो….
गुज़रा साल कुछ ऐसे ही आया

जैसे दिल के किसी कोने में
कोई नश्तर चुभ गया हो
जैसे विश्वास के पन्नो पर
स्याही बिखर गई हो
जैसे समय के होठों से
साँसे निकल गई हो
और मेरी चीख होठों से हीं नहीं
आँखों से भी निकली हो
गुज़रा साल कुछ ऐसा ही आया

जैसे मेरे बचपन की सहेली ने
भीड़ में मुझे अकेला छोड़ दिया हो
जैसे घर के संस्कारों की कड़ी
अचानक हीं टूट गई हो
इतिहास के नगीनों से
कोई अनमोल नगीना खो गया हो
और शमशान की जमीं भी
दर्द से फट पड़ी हो….
हाँ…गुज़रा साल कुछ ऐसा ही आया!!

— रश्मि अभय

रश्मि अभय

नाम-रश्मि अभय पिता-श्री देवेंद्र कुमार अभय माता-स्वर्गीय सुशीला अभय पति-श्री प्रमोद कुमार पुत्र-आकर्ष दिवयम शिक्षा-स्नातक, एलएलबी, Bachelor of Mass Communication & Journalism पेशा-पत्रकार ब्यूरो चीफ़ 'शार्प रिपोर्टर' (बिहार) पुस्तकें- सूरज के छिपने तक (प्रकाशित) मेरी अनुभूति (प्रकाशित) महाराजगंज के मालवीय उमाशंकर प्रसाद,स्मृति ग्रंथ (प्रकाशित) कुछ एहसास...तेरे मेरे दरम्यान (शीघ्र प्रकाशित) निवास-पटना मोबाइल-09471026423 मेल [email protected]

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