सवैया छंद : सुमुखी
रहूँ तुझ आपनि जानि प्रिए, तुम बूझत नाहिं बुझावत हो।
अंसुवन काढ़ि निकारि जिया कस नैनन नेह लगावत हो॥
ऊष्मावत हो बहलावत हो, नहिं जीवन छांह दिखावत हो।
हटो न कपोल किलोल करो, तजि लाज वफा शरमावत हो॥
विचारि लियो मन धारि लियो, बरबाद न यौवन यां करिहों।
मनाय दियो समझाय लियो, बिन रीत कुरीति दगा धरिहों॥
विश्वास भरो कर मांग वरो, कस पाँव महावर वा डरिहों
बताय दियो मन मंगल मोर, थिरात न पाँव सखा धरिहों॥
— महातम मिश्र
अच्छे छंद !
सादर धन्यवाद आदरणीय, बहुत दिनों बाद आप का आशीष पा मन गदगद हो गया, आभार