“कुण्डलिया छंद”
सादर सुप्रभात मित्रों, आज युवा उत्कर्ष साहित्य सचित्र रचना आयोजन में एक कुंडलिया छन्द प्रस्तुत किया जो आप सभी का आशीष चाहती है ……
“कुण्डलिया छंद”
ठंढी गई आकाश में, तितली गई पाताल
चारुलता चंचल तितली, कण पराग बेहाल
कण पराग बेहाल, समझत बच्चा नाही
तितली का उपहार, दिखाऊँ कैसे वाही
कह गौतम कविराय, तितलियाँ देखहु मंडी
तितली हुई पराय, दिखे न ऋतु पर ठंढी॥
महातम मिश्र