एक कविता लिखूं
बहुत दिनों बाद
आज मन किया एक कविता लिखूं
मन के भावों की एक सरिता लिखूं
जाने कितने दिनों से संचित हैं जो
उन विचारों की एक कृतिका लिखूं
यही विचार कर
अपने शिथिल हाथों से कलम उठाई
पर ये क्या
कलम उठाते ही उसकी याद आई
जैसे अश्रुओं की धारा
मेरे नयनो से स्याही बन आई
चीत्कार उठा मन का समंदर
वो.. जिससे बात तक न हुई कितने दिनो से
वो आज भी ठीक वैसे ही
जैसे तब थी.. मेरे मन में समायी
कैसे लिखूं कविता उसके बिन
वो ही तो थी
जो मेरे जीवन में खुद कविता बन आई
जब वो नही तो कैसे एक कविता लिखूं
मन के भावों की एक सरिता लिखूं
कविता कोई किताब नही शब्दों की
ये तो प्रेरणा है उसके लफ्ज़-ऐ-लबों की
जब वो ही नही
तो कैसे एक कविता लिखूं
कैसे एक कविता लिखूं