कविता
उमंग नही है
तरंग नही है
दिन-रात ही अब
सुख-चैन नही है
जी रहे ठंड से
ठिठुर-ठिठुर
नाउम्मीद हुए
कोई आस नही है
सबने है आखें
मूद रखी
उम्मीद की डोरी
टूट रही है
हे प्रभु !!
आप सहाय करो
बस केवल तुमसे
आस लगी है
नव वर्ष उन्हें ही
मुबारक हो
जिनके तन में
कुछ जान बची है
— कवि संयम