मन
मन विचार मगन है
ह्रदय में धधकती अगन है
आँखे हुई जलमग्न
जिह्वा में कम्पन है
ऐसा ही होता है जब
अपना ही ह्रदय साथ छोड़ दे
माझी ही नोका की पतवार छोड़ दे
हाय… क्या कहें उस मानसिकता को
जो धोखे के सिवा कुछ न दे सकी
अब उस से प्रेम करूँ या नफरत
बस मेरी हर धमनी में
अभी तो मचा यही क्रंदन है
थाम सकता नही उसको
छोड़ भी नही सकता
अब तू ही बता विधाता
वो तो विष निकल गया
जिसे मैं सोचता था चन्दन है।
वाह वाह !