देखो ! बसंत ऋतू है आई I
लहराता है जब पीत-दल
धरा जब ले अंगड़ाई
पुलकित होते उपवन जब
लेकर मानस की गहराई
देखो ! बसंत ऋतू है आई I
पिक का कुहू ध्वनि
प्रेमियों का हित-वर्धन बना
भ्रमर गीत कूजन कर
प्रीत -जोग है लगाई
देखो ! बसंत ऋतू है आई I
पीत -पुष्प फूले वन वन
राजहंस औ ” विकच कुमुदयुक्त
विराजे जब माँ शारदे आई
वेद ज्ञान ज्योति से स्पंदित
देखो ! बसंत ऋतू है आई I
गंध -मधु -सुरभित सा
खिला जिसका सुमन दल
बैठ उसमे फसल जब लहराई
देखो ! बसंत ऋतू है आई I
…….. नीरज वर्मा “नीर”
बढ़िया नवगीत !
सुन्दर
बसंत ऋतू का भी अपना ही एक नशा होता है .