आलोक उन्मुख देखो
कुहासे की चादर में, गुदगुदाती ठंड देखो,
अधर शीत को छूकर,अभिभूत हुए हैं देखो,
स्वर्ण किरनें प्यारी,कन्दीय बनी हैं देखो,
मेघो के जमघट पर,धुंध बिछी हुई देखो,
निर्झर बहे पर्वतों से, अदभुत अनुभव देखो,
इठलाती मृदु वात से, आलोक उन्मुख देखो,
आलोक उन्मुख देखो…
चिंता भाव मुखमंडल पे,करवटें बदलते देखो,
प्रेममत्त पुकार घाटियों की,समीर से सुनते देखो,
तरु के हरे हरे पत्तों से ,शहद को टपकते देखो,
सुन्दर मृदुल पलकों पर,मल्हार गीत सज़ते देखो,
उम्मीदों के भव पर, लहरों को मचलता देखो,
इठलाती मृदु वात से, आलोक उन्मुख देखो,
आलोक उन्मुख देखो….
— अनुभूति गुप्ता