तुम भी तो यही कहते थे
फिज़ाओं में आज नमी -सी है ..
इन्हें भी एहसास है शायद मेरी उदासी-का
जो गहरी पसरी है मेरे भीतर …
ये रिमझिम बरसता पानी …
जैसे मौसम भी भावुक हो रहा हो मेरे साथ
इस भावुकता ,इस नमी का क्या है रिश्ता मुझसे ..
जब पूछा तो जवाब दिया इन हवाओं ने …
जब तुम मुस्कुराती हो तो मुस्कुराते हैं ये फूल ,
खिलती हैं ये बहारें ….
जो तुम हो उदास,तो उदास हैं सब नज़ारे ….
ये सुन मन मुस्कुरा उठा ,
फिर तेरी याद का गीत गुनगुना उठा …
याद आ गए तुम फिर देखो क्यूंकि ……
तुम भी तो यही कहते थे …
तुम भी तो यही कहते थे …. !!
— मीना सूद