नवगीत – सब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में
सब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में
पर्वत, शीत हवाएँ, परिंदे
दुपके आकाश में
रही सजती धरातल भी
प्रात में
चढ़ा गुलाल गालों पर हर
बात में
सब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में
दिन गुजर रहा सुकून भरे
पलों की तलाश में
आग तापते कुछ लोग
अलाव भी जल रहा
दुपहरी की देह को, वो
चन्दन से मल रहा
सब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में
हिमनदी के कोने चिपके
जैसे पत्ते ताश में
धुंध की चादर से शहद के
कण लिपटे लगते हैं
नीले गगन के रेशमी पर्दे
खिचे हुए लगते हैं
सब खोये हैं कोहरे के बाहुपाश में
डूबी हैं सारी ख्वाइशें जैसे
सिर्फ एक काश में
— अनुभूति गुप्ता