ग़ज़ल
बारिशों में कागजों की कश्तियाँ
ढूंढता हूँ आज भी वो झाँकियाँ ।
लौट कर वापस नहीं आया कोई
मिट गईं कितनी जहाँ से हस्तियाँ ।
देख लो तुम आ के वीराना शहर
आज भी उजड़ी हैं दिल की बस्तियाँ ।
बेवफा को याद मेरी आ गई
आज मुझको आ रही हैं हिचकियाँ ।
दूर मुझसे वो नहीं रहता कभी
फासले कुछ इस वखत है दरमियाँ ।
जो हमारे गम पे हँसते थे कभी
आज कल सुनता हूँ उनकी सिसकियाँ।
— धर्म पाण्डेय
अच्छी ग़ज़ल .