ग़ज़ल
सर्द मौसम भी कभी बदलता अपना हाल है
उनके मिजाज पे बनी रहती सर्दी पूरे साल है
क्या बसंत क्या बहार,सब यूंहि आते जाते है
उनकी गली में इनका फटकना भी मुहाल है
सोचते थे हम पतझङ से तो भली यारी होगी
त्रस्त उनसे,जाने कबसे उस गली में बहाल है
सावन को तो पूछो मत कितना वो रूलाते है
भीगा ही रहता हरदम उनका सुर्ख रुमाल है
बदलना मुश्किल अब उनका इस मुकाम पे
जाने क्यूं महबूब मेरा यूं बेकदर, बेखयाल है
मुद्दतों से इतना ढूंढते आए है खुद में आपको
अपना वजूद ही आज हम पर बङा सवाल है
क्या हुआ जो देते नहीं तवज्जों हमारे इश्क को
देख रहे है आंखों से,खुदा का हम पे इकबाल है
फुर्सत पाना चाहते नहीं आपके पहलू से कभी
आजादी बख्शी आपको,भला मेरा प्रेम जाल है…