बस यूही लिख दिया
दुनिया के इस मेले के देखो सब रूप निराले हैं!
कुछ बाहर से काले हैं तो कुछ अन्दर से काले हैं।
घर ऑगन को तोड रही है एक कलह की बीमारी!
घर ये मन्दिर थे पहले जिनके दर पे अब ताले हैं!
रब के दर पे शीश झुकाने रोज सुबह वो जाता है!
जिसने घर माॅ, बापू के सपनो पर पहरे डाले हैं!
जब घोर अधेंरे में ढूबा है पूरा शहर अमीरो का!
मजदूर गरीबों के झौंपड मे चारो ओर उजाले हैं!
प्रेम से बढकर जीवन में कोई खुशी नही “चाहर”!
प्रेम ने ही अक्सर दुनिया में टूटे लोग सम्भाले हैं!
© शिव चाहर, आगरा
रब के दर पे शीश झुकाने रोज सुबह वो जाता है!
जिसने घर माॅ, बापू के सपनो पर पहरे डाले हैं! बहुत खूब .