गीतिका/ग़ज़ल

बस यूही लिख दिया

दुनिया के इस मेले के देखो सब रूप निराले हैं!
कुछ बाहर से काले हैं तो कुछ अन्दर से काले हैं।

घर ऑगन को तोड रही है एक कलह की बीमारी!
घर ये मन्दिर थे पहले जिनके दर पे अब ताले हैं!

रब के दर पे शीश झुकाने रोज सुबह वो जाता है!
जिसने घर माॅ, बापू के सपनो पर पहरे डाले हैं!

जब घोर अधेंरे में ढूबा है पूरा शहर अमीरो का!
मजदूर गरीबों के झौंपड मे चारो ओर उजाले हैं!

प्रेम से बढकर जीवन में कोई खुशी नही “चाहर”!
प्रेम ने ही अक्सर दुनिया में टूटे लोग सम्भाले हैं!

© शिव चाहर, आगरा

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]

One thought on “बस यूही लिख दिया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रब के दर पे शीश झुकाने रोज सुबह वो जाता है!
    जिसने घर माॅ, बापू के सपनो पर पहरे डाले हैं! बहुत खूब .

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