कविता
अज्ञान का असर है ,
शिक्षा का ज्ञान नहीं।
पत्थरों को पूजता है,
सत्य की पहचान नहीं।
मंदीरों में चढावा ,
गरीबों को दान नहीं।
कठपुतली बनकर रह गया ,
खुद का ईमान नहीं ।
डूब गया है , दु:ख में ;
सुख में समाधान नहीं ।
इंसानियत को समझ ले ,
दुसरा कोई वरदान नहीं ।
वरना….
जीना भी क्या जीना है,
जब जीने का अरमान नहीं ।
क्या वजूद है तेरा ,
जो इन्सान होकर भी ,
तु इन्सान नहीं।
— डाॅ हेमन्त कुमार