ताटंक छंद
यही देश है,जहाॅ धरा पर,
जनम लिया था कान्हा ने!
जीवन में खुशियाँ लाने का,
मरम दिया था कान्हा ने।
कान्हा की गाथा नित हमको,
बात यही सिखलाती है!
सौ गाली से ऊपर सहना,
कायरता कहलाती है!-1
सहनशीलता के कारण ही,
भारत टुकडो मे बाँटा!
अब तक पाल रहे नागों को,
खाकर नित मुँह पे चाँटा!
सहनशीलता के कारण हम,
मन्दिर नही बना पाये!
रोज यहाँ पर गाय कटी हम,
माॅ को नही बचा पाये!-2
अब गिनती सौ होने को हैं,
अब करनी तैयारी है!
अब तक हमने सहा बहुत है,
आज तुम्हारी बारी है!
सहनशीलता का दामन जो,
प्यारे हमसे रूठेगा!
जन्नत की बस टिकट कटेगी,
और न कोई छूटेगा!-3
गाली देना दूर बहुत तुम,
माँ को घूर न पाओगे!
गाय काटने की छोडो तुम,
बकरे से घबराओगे!
खूब करो तुम मस्ती लेकिन
ये पैगाम हमारा है!
मेरी रचना सौ गलती का,
करती तुम्है इशारा है!-4
© शिव चाहर “मयंक”