नारी
निज त्याग से उन्होने,
इतिहास लिख दिया है!
अपनी खुशी लुटाके,
खुशहाल जग किया है!
जग से बजूद उनका,
अब खो नही सकेगा!
घर नारियों बिना ये,
घर हो नही सकेगा!
जब भी कभी पुकारा,
बस पास वो खडी थी!
सुनते ही दर्द मेरा,
वो खुद भी रो पडी थी!
सत कर्म का सभी को,
दर्पण दिखाती नारी!
सुख दुख में सँग जीना,
सबको सिखाती नारी!
शिव चाहर मयंक