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राज्यस्तरीय कार्यशाला में उठी उच्च शिक्षा जगत की समस्याएं

विवि में संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या दो सौ आदर्श…… प्रो सुरेंद्र दुबे
विद्यार्थियों की उपस्थिति के लिए 50 अंक भी तय किए जाएं

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों की अधिकतम संख्या तय की जानी चाहिए। यदि कालेजों की संख्या दो सौ तक रखी जाए तो यह स्थिति आदर्श होगी। प्रो. दुबे बुधवार को गांधी सभागार में आयोजित एकदिनी राज्यस्तरीय कार्यशाला में बोल रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान के तहत नई शिक्षा नीति के संदर्भ में राज्य स्तरीय विचार विमर्श के लिए आयोजित की गई। इसमें आगरा, अलीगढ़, झांसी और चित्रकूट मंडलों के महाविद्यालयों के प्राचार्यों, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के विभिन्न संस्थानों के प्रमुखों और इससे संबद्ध महाविद्यालयों के प्राचार्यों ने हिस्सा लिया।

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए प्रो. दुबे ने कहा कि आज प्रदेश के अनेक विश्वविद्यालयों से संबद्ध कालेजों की संख्या विस्फोटक स्थिति में पहुंच गई है। उन्होंने कक्षाओं में विद्यार्थियों की उपस्थिति न होने को बड़ी समस्या बताते हुए इसके निराकरण के लिए एक फार्मूला भी सुझाया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों की वर्षभर की उपस्थिति के लिए 50 अंक भी तय किए जा सकते हैं। इस अंक में से उपस्थिति के अनुपात में ही विद्यार्थियों को अंक दिए जाएं। प्रो. दुबे ने कहा कि जो शिक्षक कक्षाओं में पढ़ाने को नहीं पहुंचते हैं उन्हें भी दंड दिया जाना जरूरी है। इस संबंध में गोस्वामी तुलसीदास के दोहे भय बिनु होय न प्रीति का उन्होंने उल्लेख किया। साथ ही यह भी जोड़ा कि दंड सुधारात्मक नजरिए से दिया जाना चाहिए।

कौशल विकास के लिए प्रो दुबे ने स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ एड आन कोर्स शुरू करने पर भी बल दिया। इनमें से कुछ डिप्लोमा या कुछ सर्टिफिकेट कोर्स हो सकते हैं। अपने विद्यार्थी जीवन का उल्लेख करते हुए प्रो दुबे ने कहा कि पहले एनएसएस के शिविर अवकाश के समय गांवों में लगते थे लेकिन अब ऐसा देखा जा रहा है कि ऐसे शिविर शहरी क्षेत्र में लगते हैं। वास्तव में इन शिविरों को ग्रामीण क्षेत्रों में लगाया जाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों को ग्रामीणों से अंर्तक्रियात्मक संबंध बनाने का अवसर मिले, तभी बेहतर परिणाम निकलेंगे। उन्होंने गीता के कृष्ण और अर्जुन संवाद और महाभारत के यक्ष प्रश्न के प्रसंगों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में आदिकाल से प्रश्नोत्तर की परंपरा चली आ रही है। इससे समाज को नई और सही दिशा मिलती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार बेहतर शिक्षा नीति बनाने में सफल होगी।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि और विशेष सचिव उच्च शिक्षा पीके पाण्डेय ने कहा कि किसी भी नीति को सफल बनाने के लिए उसमें जनसहभागिता होनी जरूरी है तभी वह सफल होगी। इसी को ध्यान में रखकर राज्य स्तरीय चार कार्यशालाएं क्रमानुसार झांसी, मेरठ, इलाहाबाद और लखनउ मंे आयोजित हांेगी। उन्होंने बताया कि इस नीति के लिए ब्लाकस्तर पर भी विचार मंथन किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में प्राप्त सुझावों को कंेद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। केंद्र सरकार इन्हें ध्यान में रखकर नई शिक्षा नीति बनाएगी।

रूसा के डिप्टी डायरेक्टर डा. आलोक श्रीवास्तव ने उस प्रश्नावली को कार्यशाला में सबके सम्मुख पेश किया जिस पर लोगों के विचार मांगे गए हैं। कार्यशाला में कक्षाओं में विद्यार्थियों और शिक्षकांे की उपस्थिति न होने का मामला प्रमुखता से उठा। एक स्वर से इस समस्या के निराकरण के लिए बायोमीट्रिक उपस्थिति अनिवार्य करने की मांग की गई। साथ ही ऐसा करने वाले शिक्षकों को दंड देने और अच्छा कार्य करने वालों को पुरस्कुत करने की मांग भी उठी। इसी दौरान शिक्षकों को बहुत कम वेतन दिए जाने और उनके साथ भेदभाव किए जाने का मुददा भी उठा। यह मांग की गई कि शिक्षकों का वेतन इतना आकर्षक हो कि उच्च गुणवत्ता की मेधाएं इसे व्यवसाय के रूप में अपनाएं। एपीआई स्कोर बढ़ाने की गरज से शिक्षकों के सेमिनार में चले जाने की वजह से कक्षाएं एवं पढ़ाई प्रभावित होने की बात भी कार्यशाला में उठी। मंाग उठी कि कार्यशालाएं अवकाश के दिनों में ही आयोजित की जाएं। यह अनिवार्य नियम बनाया जाए कि छात्रवृत्ति उसी विद्यार्थी को मिलेगी जिसकी उपस्थिति 75 फीसदी हो। अभी विद्यार्थी प्रवेश लेने के साथ ही छात्रवृत्ति फार्म भर देता है और सालभर कक्षाओं से अनुपस्थित रहता है।

कार्यशाला में स्टेट हायर एजुकेशन काउंसिल और स्टेट एक्रीडीशन कमेटी को मजबूत करने पर जोर दिया गया। कई शिक्षकों और प्राचार्यों ने दुनिया की नामवर संस्थाओं में प्रदेश के किसी विवि का नाम न होने को पुअर स्टेट फंडिंग का नतीजा बताया। उन्होंने शोध और प्रयोग के लिए और अधिक धन और संसाधन मुहैया कराने पर जोर दिया। कार्यशाला में आन लाइन कोर्स को प्रमोट करने, सभी वर्गों के शोधार्थियों को सरकारी मदद देने और उच्च शिक्षा के लिए ढाई लाख तक की आय वर्ग के विद्यार्थियों को कम ब्याज पर ़ऋण मुहैया कराने की मांग की गई। हर विश्वविद्यालय में सुविधाओं से सुसज्जित इन्नोवेशन सेंटर, उचित स्टाफ की तैनाती, पीपीपी माडल को सार्थक और जनकल्याण की लिहाज से अपनाने की मांग भी की गई। हर विवि में हिंदी और संस्कृत के विभाग स्थापित करने पर भी बल दिया गया।

इससे पहले कुलसचिव पारसनाथ प्रसाद ने सभी अतिथियों का गरमजोशी से स्वागत किया। इस कार्यशाला की शुरुआत मुख्य अतिथि और अन्य अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप जलाकर और माल्यार्पण कर किया। इस कार्यशाला में डा. एके गोयल, डा. आरपीएस यादव, बीकेडी के प्राचार्य डा. बाबूलाल तिवारी, डा. आरके अग्निहोत्री, डा. सीएस यादव, डा. एमसी जैन, प्रो. एमएल मौर्य, प्रो एसपी सिंह, प्रो वीके सहगल, प्रो पूनम पुरी, प्रो सुनील काबिया, प्रो. वीपी खरे, प्रो अपर्णा राज, प्रो धीर सिंह, प्रो बीडी जोशी, प्रो सुनील प्रजापति, डा.सीबी सिंह, इंजी राहुल शुक्ल, डा. शिव कुमार कटियार, डा डीके भटट, डा. आरके सैनी, डा. सीपी पैन्यूली, सतीश साहनी, उमेश शुक्ल, डा. नीता यादव, डा. सुनील कुमार त्रिवेदी, डा. सौरभ श्रीवास्तव, डा. श्वेता पाण्डेय, अभिषेक कुमार, उमेश कुमार समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। संचालन दिनेश गुरूदेव ने किया। अंत में डा. यशोधरा शर्मा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

प्रस्तुति- उमेश शुक्ल