बाल कहानी — चॉक्लेट चाचा
रूपल के पति का तबादला दिल्ली में हो गया था । बड़े शहर में जाने के नाम से ही वह तो खिल गयी थी । नया शहर, नया घर , नये तरीके का रहन-सहन । बड़ी ही अच्छी जगह अपार्टमेंट दिया था कंपनी ने । नौ मंज़िला बिल्डिंग में हवा व रौशनी की अच्छी व्यवस्था की गयी थी । नीचे बहुत बड़ा एवं सुंदर पार्क था जिसमें शाम के समय ज़्यादातर महिलाएँ अपने बच्चों को ले कर आ जातीं । बच्चे वहीं खेल लेते और महिलाएँ भी हवा व बातों का आनंद लेती । हरी-भारी घास में रंग-बिरंगे कपड़े पहने बच्चे बड़े ही अच्छे लगते । बिल्डिंग के बाहर ही एक मंदिर बना हुआ था जिसमें सुबह-शाम घंटियों व आरती की आवाज़ सुनाई देती । आरती के समय अपार्टमेंट के बुजुर्ग महिलाएँ व पुरुष मंदिर में जमा हो जाते ।
रूपल ने भी नयी सोसायटी के रहन-सहन को जल्दी ही अपना लिया था और शाम के समय अपनी डेढ़ वर्षीय बेटी को पार्क मे ले जाने लगी और कभी-कभी आरती के समय मंदिर भी ले जाने लगी । एक दिन उसने देखा एक बुजुर्ग के पार्क में आते ही सभी बच्चे दौड़ कर उनके पास पहुँच गये और चॉक्लेट चाचा, चॉक्लेट चाचा कह उनसे चॉक्लेट लेने लगे । सभी बच्चों को चॉक्लेट दे वे रूपल के पास भी आए और उस से भी बातें करने लगे और उसे व उसकी बेटी को भी एक-एक चॉक्लेट दे दिया । पहले तो रूपल ने झिझकते हुए चॉक्लेट लेने से इनकार कर दिया किंतु जब चॉक्लेट चाचा ने कहा की बच्चों के चेहरे पर खुशी देख उन्हें बहुत अच्छा लगता है तो रूपल व उसकी बेटी ने भी चॉक्लेट ले लिया ।
पूरे अपार्टमेंट के लोग उन्हें चॉक्लेट चाचा के नाम से पुकारते । सो अब रूपल की बेटी भी उन से रोज चॉक्लेट लेने लगी और वह भी बच्चों की तरह उन्हें देख कर दौड़ पड़ती ।
एसा करते ६ माह बीत गये । अब तो रूपल की अपार्टमेंट में सहेलियाँ भी बन गयी थी । तभी उसकी एक सहेली जिसकी १० वर्षीय बेटी थी ,ने पूछा ” क्या तुम चॉक्लेट चाचा को जानती हो ?” रूपल ने कहा हाँ बहुत ही अच्छे इंसान हैं । सारे बच्चों को बहुत ही प्यार करते हैं । उसकी सहेली ने कहा ” मैंने सुना है चॉक्लेट के बदले लड़कियों को उनके गालों पर किस करने बोलते हैं ” रूपल बोली एसा तो नहीं देखा । सहेली ने आगाह करते हुए कहा तुम थोड़ा ध्यान देना इस बार जब वे पार्क में आएँ ।
रूपल ने भी जवाब में हाँ कह दिया । अगले ही दिन जब रूपल अपनी बेटी को मंदिर ले कर गयी तो उसने देखा चॉक्लेट चाचा वहाँ बैठे थे और उसकी बेटी दौड़ कर उनके पास गयी और उनके गालों पर किस कर दिया । रूपल तो यह देखते ही सन्न रह गयी । वह तो समझ ही न पाई कि कब व कैसे चॉक्लेट चाचा ने उसकी बेटी को किस करने के लिए ट्रेन कर दिया था । उन्हें देखते ही वह चॉक्लेट के लालच में किस करने लगी थी । अब जब वह पार्क में जाती तो वह चॉक्लेट चाचा को देखते ही सतर्क हो जाती । और हर बार चॉक्लेट चाचा को मना करती कि वे उसकी बेटी को चॉक्लेट न दें । वह यह भी देखती कि चॉक्लेट चाचा अन्य लड़कियों को गले लगाते एवं कुछ की छाती व पीठ पर भी मौका पाते ही हाथ फिरा देते । यह सब देख उसे घबराहट होने लगी थी और वह स्तब्ध रह जाती कि चॉक्लेट चाचा कैसे सब लड़कियों को ट्रैनिंग दे रहे थे और उनकी मासूमियत और अपने बुजुर्ग होने का फ़ायदा उठा रहे थे ।
अब तो जब वह कभी-कभी अपने पति व बेटी के साथ मंदिर जाती और चॉक्लेट चाचा को देखती उसके पति भी कह देते की उनकी बेटी को डॉक्टर ने चॉक्लेट खाने के लिए माना किया है सो वे उसे न दें । पर चॉक्लेट चाचा तो उसे चॉक्लेट दिए बिना मानते ही नहीं । दोनों पति-पत्नी ने उन्हें कई बार समझाया । पर वे किसी न किसी तरह उनकी बेटी को चॉक्लेट दे ही देते । अब रूपल चॉक्लेट चाचा को देखते ही अपनी बेटी को वहाँ से ले जाती । लेकिन चॉक्लेट चाचा तो अपार्टमेंट में सब जगह घूमते और उसकी बेटी को चॉक्लेट दे ही देते और बदले में उसकी बेटी उन्हें बिना बोले ही किस कर देती । अब रूपल मन ही मन डरने लगी थी कि इस तरह तो उसकी बेटी चॉक्लेट या किसी अन्य वस्तु के लिए किसी के भी पीछे चल देगी । और वह इतनी बड़ी भी न थी कि वह उसे समझा सके । इस तरह तो कोई भी उसकी बेटी को बहला-फुसला सकता है । उसने फ़ैसला कर लिया कि अब वह चॉक्लेट चाचा को मनमानी नहीं करने देगी । अगले दिन जब चॉक्लेट चाचा अपने अन्य बुजुर्ग मित्रों के साथ वहाँ आए और जैसे ही उसकी बेटी को चॉक्लेट देने लगे वह चीख कर बोली ” अंकल हाउ मैनी टाइम्स ई नीड तो टेल यू डोंट गिव चॉक्लेट तो माई डॉटर ”
यानी कि मैं आपको कितनी बार बोलूं कि आप मेरी बेटी को चॉक्लेट न दें । इस बार चॉक्लेट चाचा रूपल का मूड समझ गये थे ,उनके मित्र तो इतना सुन कर वहाँ से नदारद हो गये थे । और चॉक्लेट चाचा बिना कुछ बोले वहाँ से खिसक लिए । किसी बुजुर्ग से इस तरह व्यवहार करना रूपल को अच्छा न लगा इस लिए वह पार्क में अकेले ही चुपचाप बैठ गयी । तभी सभी महिलाएँ जो आस-पास यह सब होते देख रही थी बोली “हां तुमने ठीक किया ,हम सभी चॉक्लेट चाचा की इन हरकतों से बहुत परेशान हैं यह तो लिफ्ट में आती-जाती महिलाओं को भी किसी न किसी बहाने स्पर्श करना चाहते हैं मगर उनकी उम्र एवं अपने अपार्टमेंट में रहने के कारण लिहाज करते हुए कुछ बोल नहीं पाते । इतना कह सब एक-एक कर अपने-अपने किस्से बताने लगीं । अब रूपल को समझ आ गया था कि चॉक्लेट चाचा की हरकतों को कोई भी पसंद नहीं कर रहा था लकिन कहते हैं न ” बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे ? ” इसी लिए सभी चुप थे ।
उस दिन वह गहन सोच में पड़ गयी कि क्या यही है हमारा सभ्य समाज ? जहाँ लोग रिश्तों या फिर अपनी उम्र की आड़ में या फिर लोगों द्वारा किए गये लिहाज का फ़ायदा उठाते हुए मनमानी या यूँ कहिए कि बदतमीज़ी करते हैं । और तो और मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ते । अब उसे अपने किए पर कोई पछतावा न था और वह तो अपार्टमेंट की सभी महिलाओं की अच्छी सहेली बन गयी थी । उसके द्वारा की गयी पहल पर सब उसे बधाइयाँ दे रहे थे ।
— रोचिका शर्मा , चेन्नई
बहुत शिक्षाप्रद कहानी !
सुन्दर कहानी!!!