कांग्रेस की सहिष्णुता
एक पत्रिका है — ‘कांग्रेस दर्शन’। यह कांग्रेस की अधिकृत पत्रिका है और सही अर्थों में कांग्रेस के दर्शन को प्रदर्शित करती है। इसके संपादक हैं, मुंबई कांग्रेस के बड़बोले अध्यक्ष श्री संजय निरुपम। विगत २८ दिसंबर को कांग्रेस की स्थापना दिवस के अवसर पर प्रकाशित इस पत्रिका के मुख्य लेख ने तहलका मचा दिया और संपादकीय विभाग के संपादक की बलि ले ली । पत्रिका के मुख्य लेख में एक सच्चाई को अनावृत किया गया था, जिसे सारा हिन्दुस्तान जानता है, लेकिन कांग्रेसी, विशेष रूप से नेहरू खानदान के भक्त सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते हैं। पत्रिका में दो रहस्योद्घाटन किए गए थे —
1. आज़ादी के बाद नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना देशहित में नहीं था। कांग्रेस का विशाल बहुमत पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में था, लेकिन गांधीजी के हस्तक्षेप और नेहरू का खुला समर्थन करने के कारण पटेल ने अपना नाम वापस ले लिया और नेहरू प्रधानमंत्री बन गए। लेख में नेहरू की विदेश नीति की जमकर आलोचना की गई है तथा कश्मीर की समस्या और १९६२ में चीन के हाथों भारत की शर्मनाक पराजय के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया है।
2. दूसरा रहस्योद्घाटन यह है कि सोनिया गांधी के पिता एक ‘फ़ासीवादी सैनिक’ थे। यह सत्य है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सोनिया के पिता इटली के तानाशाह मुसोलिनी की सेना में थे और उन्होंने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ़ युद्ध किया था। हिटलर और मुसोलिनी के पतन के बाद रूसी सेनाओं द्वारा वे गिरफ़्तार किए गए और रुस के जेल में रखे गए। उनके जेल में रहने के दौरान ही सोनिया गांधी का जन्म हुआ। परिवार की माली हालत बहुत ही खस्ता थी जिसके कारण अल्प वय में ही सोनिया को इंग्लैंड जाना पड़ा और वहा बार-बाला की असम्मानजनक नौकरी करके परिवार का भरण-पोषण करना पड़ा।
‘कांग्रेस दर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित उपरोक्त तथ्यों को सारी दुनिया जानती है, लेकिन अपनी ही पत्रिका का मुखर होना हाई कमान को कैसे बर्दाश्त होता? पहले संपादकीय विभाग के संपादक की छुट्टी की गई और अब संजय निरुपम पर गाज़ गिरने वाली है। अखिल भारतीय कांग्रेस की अनुशासन समिति के अध्यक्ष श्रीमान ए.के. एंटोनी ने सोनिया गांधी की टेढ़ी भृकुटि के मद्देनज़र श्री संजय निरुपम को कारण बताओ नोटिस जारी की है। निरुपम जी की अध्यक्ष पद से विदाई तय है । निरुपम जी ने पहले ही सफाई दे दी है कि यद्यपि वे पत्रिका के मुख्य संपादक हैं, लेकिन उन्हें ऐसे लेख के छपने की जानकारी नहीं थी। यह कांग्रेसी कल्चर है। मुख्य संपादक मक्खनबाज़ी के काम में इतने मशगूल रहते हैं कि संपादक होने के बावजूद छपने के पूर्व लेखों को नहीं देखते हैं। यह मनमोहिनी संस्कृति है जो सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद दिन दूनी रात चौगुनी की गति से फल-फूल रही है।
असहिष्णुता के नाम पर अपने ३५ दरबारी साहित्यकारो द्वारा पुरस्कार वापसी का ड्रामा कराने वाली कांग्रेस की सहिष्णुता का जीता-जागता उदाहरण भी है – श्री श्री संजय निरुपम को थमाई गई कारण बताओ नोटिस।
— बिपिन किशोर सिन्हा