गीत/नवगीत

गीत : दिल का टुकड़ा

 

दिल ने स्वप्न दिखाये उसको और उसे मजबूर किया।
ख्वाबों ने दिल का टुकडा ही नजरों से अब दूर किया।

उसका गिरना और सम्हलना याद बहुत ही आता है!
तुतलाकर वो मुझे बुलाना मुझको बहुत सताता है।
माँ की लोरी पिता की गोदी याद उसे आती होगी।
बिन बालों में हाथ फिराये नींद नहीं भाती होगी।
फिर भी दूर रहा अब तक वो क्यों इतना मगरूर किया।
ख्वाबों ने दिल का टुकडा ही नजरों से अब दूर किया।

देख कभी खुद की परछाईं जो कल तक डर जाता था।
जिसकी आह पे खुद ही जल, इन ऑखों में भर आता था।
एक रूपये की चाह में उसका माँ का रोज मनाना वो।
गलती कर अनभिज्ञ खडा हो हमसे उसे छुपाना वो।
एक रूपये को भूल गया वो जब दौलत ने चूर किया।
ख्वाबों ने दिल का टुकडा ही नज़रों से अब दूर किया।

बिन तेरे अब लाल हमें ये हर त्योहार जलाता है।
लौट के वापस घर आ जा ये ऑगन तुझे बुलाता है।
इस घर के हर कोने से आवाज तेरी अब आती है।
किलकारी की गूँज पुरानी हमको बहुत सताती है।
तेरी यादों ने कलियों को भी अब मानो सूर किया।
ख्वाबों ने दिल के टुकडे को नजरों से अब दूर किया

माँ की ममता रो रो कर नित अपना लाल बुलाती है।
और पिता की मर्यादा सीने में दर्द छुपाती है।
तोड के सारे ख्वाब लाल अब पास हमारे आ जा तू!
भूखे हैं माँ बाप याद में रोटी इन्हैं खिला जा तू!
माॅ ने दोष छुपाकर जिसको दुनिया में मशहूर किया।
ख्वाबों ने दिल का टुकडा ही नजरों से अब दूर किया।

— शिव चाहर “मयंक”

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]