ग़ज़ल
मेरे दिल की क्या खता इस को मुहब्बत हो गयी
ना करेंगे हम जफा तेरी ही चाहत हो गयी
क्यूँ जमाना कह रहा रहता हूँ मैं कुछ खोया सा
हम दिवाने आप के कैसी ये हालत हो गयी
ये फिजायें वादियाँ सब गुनगुनाते गीत हैं
फूल तितली शोख़ कलियाँ तेरी सूरत हो गयी
तू बिखेरे रंग अपने मन बसन्ती हो गया
नाम लिख दूँ आसमाँ पे गर इनायत हो गयी
हो गया मुजरिम खुदा का कर के तेरी बन्दगी
छोङ कर सारी खुदायी तू इबादत हो गयी
— रोचिका शर्मा