लघुकथा

~~गूंगी बहरी माता~~ 

” ‘ कौन है रे तू ‘ //ये राजपथ है ऐसे कैसे मुहं ढके चली आ रही है | “

‘ मैं ‘– “मैं भारत माता हूँ”

“तू और भारत माता ” ..जोर का ठहाका लगाते हुय सुरक्षाकर्मी बोला

क्यों शर्मिंदगी हुई क्या सुन के ? मेरे बच्चे भूखे है अतः रोटी लिय जा रही हूँ ,और कई बच्चे अनाथ है और ये बच्ची कूड़े की ढेर पर थी अतः कमर में लटका रक्खा है  मैं पालूंगी इसे । जैसे सब अनाथ बच्चों को पाल रहीं! और देश का प्रतिक यही राजपथ पर ही बिखरा था कैसे अपमान होते देखती अतः उठा सहेज लिया मैने … ” “अब भी कोई शक है क्या तुम्हें ?”

“नहीं ..नहीं माता , पर यहाँ कैसे और यह मुहं क्यों ढक रक्खा है ?”

“यहाँ नेताओं के गिरगिटी रंग देखने आई हूँ और मुहं से पर्दा उठा दिया तो और भी शर्मिंदा होने के साथ साथ डर भी जाओगें बेटे|”

“क्यों भला ?”

क्योकि कुदृष्टि डाली थी किसी ने और मेरे विरोध करने पर एसिड फेंक दिया , नक्शा बिगड़ गया है मेरा|

” क्या बहस कर रही है ‘बुढ़िया’ ? भागाओ इसे , इधर से नेताओं का आना शुरू हो चूका है, किसी की नजर पड़ी तो नौकरी से जाओगें | ” दूसरा साथी गुस्से में बोला

“पागल है यार बस अभी हटा रहा हूँ ”

“भारत माता- आप जरा कृपा करेगी और  जो कुर्सिया रक्खी है वहां विराजेंगी |” कुटिल हंसी हँसते हुय बोला ..

” हाँ बेटा, क्यों नहीं ?  माँ बच्चो के लिए गूंगी-बहरी – अंधी बनी रह सकती है, बस मेरे बच्चें सही सलामत रहें , परन्तु बच्चों को कुछ हुआ तो…..! ” आँखे अब आग उगल रहीं थी । सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “~~गूंगी बहरी माता~~ 

  • मनजीत कौर

    लघु कथा दिल को छू गयी देश में लड़कियों की बुरी हालत है लड़कियों को कोख में ही मार दिया जाता है ,जा कूड़े के ढेर पर फैंक दिया जाता है , उनके चहरे पर एसिड फैक दिया जाता है भारत माता तो दुखी होगी ही बहुत सुन्दर लघु कथा के लिए शुक्रिया जी

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