कविता

~संस्कार~

पुरानी पीढ़ी ने हमें कंधो पर बैठाया

सच्चे बुरे का सभी फर्क समझाया|

पर हम तो भागती दुनिया के पीछे ही भागे

कब अपने बच्चों को कंधो पर बैठा बढे आगे

उन में संस्कार नहीं है अब चिखते-चिल्लातें

क्या हम अपनी पीढ़ी से मिले संस्कार सच्ची में उन्हें दे पायें|

फिर भी गनीमत है वह अभी हमारी कद्र करते है

शायद कन्धा नहीं हमारी ऊँगली पकड़ चलने का मान करते है|

पर आज की पीढ़ी तो कुछ इस तरह मार्डन हो गयी है

कन्धा -उंगली दोनों छोड़ टोकरी में रख शिशु चल रही है|

क्या वह संस्कार पा रहे है

अपनी माँ-बाप के छुवन के अहसास को भी

नहीं सही से महसूस कर पा रहे है|

आगे चल यह शिकायत ना करना कभी अगली पीढ़ी से

कि तुम संस्कार विहीन और मार्डन हुए जा रहे हो

जब वह तुम्हे ट्राली में बैठा कही घुमाएँ

गनीमत समझना की रास्तें पर

तुन्हें वह लावारिस नहीं छोड़ आये |….सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|