कुण्डलिया छंद
सादर शुभ दिवस, एक कुण्डलिया आप सभी को सादर निवेदित है
“कुण्डलिया”
सरदी आखिर आ गई, लिए बरफ की छाँव
कांपे चीन अमेरिका, ध्रूज रहा है पाँव
ध्रूज रहा है पांव, ठंढ लोगों से कहती
भर दूंगी गोदाम, बरफ झरनों में बहती
कह गौतम कविराय, न है कुदरत बेदरदी
नाहक बैर लगाय, पहाड़ा पढ़े न सरदी ।।
महातम मिश्र (गौतम)