भूल गया हूँ
भूल गया हूँ
झूठ से दोस्ती करना
गुनाहों को साथ रखना
रेत की जमीं पर अपनी
किस्मत को पढ़ना l
भूल गया हूँ
साहिलों से टकराना
दूसरो की खतिर खुद
बर्बाद हों जाना
हमेशा मर के जीना या,
जीने के लिये मर जाना l
भूल गया हूँ मैं खुद
कभी न देखा सुख
ऐसा क्या किया जुर्म
मौत भी गया रूठ l
ए, बेवफा अब तु ही कर दुआ
ये, अभागा ‘ मुकेश ‘ को ले जाये खुदा I
—- मुकेश नास्तिक
नास्तिक जी ,कविता अच्छी लगी .