~इंसानियत जगा रहे~
हमें हैरान-परेशान देख
एक व्यक्ति ने हमसे पूछा
क्या खोज रही है आप
हमने कहा ही था
कि इंसानियत
वह सुन सकपकाया
हमें तरेर कर देखा
शायद पागल समझ बैठा
थोड़ा हैरान हो
बोला बड़ी अजीब हो
यहाँ इंसानों की भीड़ है भरी
और तुम्हे इंसानियत ही नहीं दिखी|
हमने कहा हा नहीं!
कही नहीं दिखी
वह बड़बड़ाता हुआ
मुड़-मुड़कर बार-बार
अजीब निगाहों से
देखता हुआ चला गया|
क्या आपको भी
हम पागल दिखते है
आप ही बताओ
किसी असहाय को
असहाय ही छोड़ चल देना
क्या इंसानियत होती है
सड़क पर घिसटते हुए
आदमी को देख
मुहं फेर चल देना
क्या इंसानियत होती है
भीख मागते इंसानों के मुहं पर ही
अशब्द कह उसे
बिना कुछ दिए चल देना
क्या इंसानियत होती है
मदद के लिए पुकार रहे
कातर ध्वनि को
अनसुनी कर देना
क्या इंसानियत होती है|
आप ही बता दो
क्या इंसान ऐसे होते है
अब तो हम हतप्रभ है
यह देख कि हम जिसे
बाहर खोजना चाह रहे थे
वह तो अपने अंदर ही
नहीं पा रहे अतः
दुसरे को कोसना छोड़ कर
अब खुद में ही थोड़ी
इंसानियत जगा रहे है |
आप सब भी मदद करेंगे न !!
<<<सविता मिश्रा >>>
आभार भैया
बहुत खूब आदरणीया जी, वाह