मुक्तक
१ } गम पीके यूँ गमगीन ना बन
हंस दे जरा दीनहीन ना बन
मीठी-मीठी कर बात मुझसे
धैर्य धर, यूँ तू धैर्यहीन न बन| सविता
२}चंद खुशियाँ समेट ले गम के बाजार से
चाहत यह अपनी क्यों कर ना अब मार ले
हर एक मोड़ पर बैठा है कोई काफिर
कैद हो जाये अब क्यों न दर दीवार में| सविता मिश्रा
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण मुक्तक आदरणीया जी, वाह
आभार आदरणीय _/_