कविता सिंह की ग़ज़ल
तुम्हारे प्यार की तासीर में बेचैन मेरा दिल,
तुम्हे पाने की हर तदबीर में बेचैन मेरा दिल।
अधूरी ख़्वाहिशें मेरी अधूरे ख़्वाब हैं मेरे,
अधूरे ख़्वाब की तामीर में बेचैन मेरा दिल।
अकेला सा खड़ा बरगद झुकी फैली हुई शाखें,
अकेलेपन की इस तक़दीर में बेचैन मेरा दिल।
बड़े बेचैन हैं अब लोग टूटी अब शनासाई,
इसी बिखरी हुई तस्वीर में बेचैन मेरा दिल।
कहाँ साझे के वे चूल्हे कहाँ पनघट की वो रौनक,
“वफ़ा” कब दब गई दीवार में बेचैन मेरा दिल।
– कविता सिंह